Thursday 16 February 2012

सब दुल्हन सा.....

नन्ही बच्चियाँ सिर पर
ओढनी डाल कर दुल्हन बन जाती हैं...
वो जानती हैं,
दुल्हन जैसा कोई नहीं...

जो सुंदर है,
जो कुछ भी सुंदर है,
वो दुल्हन जैसा है...

रूप अगर लाजवाब है, तो दुल्हन का. कुछ सजा अच्छा हो, तो दुल्हन सा. नवेला और तारीफ़ के काबिल हो, तो नयी दुल्हन सा. हया की लाली भी अगर कहीं की मिसाल देने लायक होती है, तो दुल्हन के चेहरे वाली. चाल तो दुल्हन की, आन तो उसकी, और शान तो भी उसकी ही.

जो शादी के घर में आता है, पहले दुल्हन को देखने की ख्वाहिश ज़ाहिर करता है. मंडप में अगर कहीं निगाह ठहरती है, तो दुल्हन पर.

सच कहें, तो हमारी संस्कृति में दुल्हन एक ऐसी शख्शियत का नाम है, जो मानो शादी वाले दिन यकायक जन्म लेती है और सबको मोहित कर लेती है. एक पारी है दुल्हन.

वो लकदक, गहने, रेशमी कपड़े, शृंगार, चुनरी, पायल, टीका, कंगन, वेणी, बिंदी मानो इस दिन से पहले किसी ने पहने ही ना थे.

किसी वीराने को केवल एक कूची से संवार देना हो, वहाँ बहार ले आनी हो, तो वहाँ दुल्हन को ले जाना काफ़ी होगा.

एक जादू का नाम है दुल्हन. आलते का रंग, मेहन्दी की खुश्बू, फूलों का नज़ारा, सुनहरी आभा है.

एक नयी शुरुआत है दुल्हन...

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