Saturday 12 May 2012

बेचारा दिल...


मेरे स्वाभिमान को तोड़ने में कसर नहीं छोड़ी,
आजकल उन अपनों से डरता है दिल.

सपने पूरे करना तो बहुत दूर है फिर भी,
आजकल तो खाली सपनों से डरता है दिल.

कहाँ थे हम और कहाँ लाके छोड़ दिया,
तक़दीर और इन हालातों से डरता है दिल.

सहानुभूति से कोई हमारा हाल ना पूछे,
तमाम तरह के सवालों से डरता है दिल.

सोचने को तो शायद अब कुछ बाकी नहीं रहा,
जाने किस सोच में अब पड़ता है दिल.

कभी हारे कभी जीते कि लड़ता है अब खुद ही से,
अब तो बस अपने ही पचड़ों में पड़ता है दिल.

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