Thursday, 28 July 2011

जौक और ग़ालिब की दिल्‍ली :- यहाँ वक्त बदलता है, अफ़साने नहीं...

जब भी दिल्‍ली का ज़िक्र होता है, बरबस ही होठों पर मशहूर शायर जौक की ये पंक्तियाँ आ जाती हैं, कौन जाए जौक पर दिल्‍ली की गलियाँ छोड़कर| जी हाँ! देश में मेट्रो तो कई हैं, लेकिन दिल्‍ली की शान ही कुछ और है| पांडवों के 'इंद्रप्रस्थ' से लेकर मुगलों के 'देहली' और अंग्रेज़ों के 'डेल्ही'  से लेकर नए भारत की 'न्यू डेल्ही' तक, दिल्‍ली के जलवों, इसके अफ़सानों का जितना बखान किया जाए, उतना कम है| वाकई किसी भी दूसरे महानगर का न तो इतिहास इतना घटनाओं से भरा है और न ही वर्तमान इतना चमकदार है|

दिल्‍ली वाकई में देश का दिल है| किसी नगमे सरीखा इसका इतिहास और वर्तमान, दोनों संगीतमय हैं| यहाँ गली-गली में ख़ौफ़ और शौक की कहानियाँ बिखरी पड़ी हैं| ये चाँदनी चौक है, पुरानी दिल्‍ली है| मुगलों के शानो-शौकत का प्रतीक चाँदनी चौक आज भी दिल्‍ली के धड़कते हुए दिल की कहानी कहता है| ये लुटियन जोंस है, पॉवर ऑफ पॉलिटिक्स का गढ़| अँग्रेज़ों के जमाने में भी ये उतना ही महत्वपूर्ण था जितना की आज है| दिल्‍ली के एतिहासिक कद, इसकी सियासी हैसियत, सत्ता - सब कुछ अलग-अलग आकर्षक सतरंगे और विशिष्ट हैं|

जहाँ दिल्‍ली का इतिहास हमें गली-गली में रोमांचित करता है, कहानी-दर-कहानी हमें भारत के अतीत का ब्योरा देता है, वहीं इसका वर्तमान भी कुछ कम नहीं है| अगर अतीत की दिल्‍ली भारत के स्वर्णिम अतीत की चमकदार कहानी है तो वर्तमान की दिल्‍ली महाशक्ति के रूप में उभरते भारत की पहचान है| ताकतवर भारत का ड्राइंग रूम है| आधुनिक विकास में वाकई दिल्‍ली का कोई मुकाबला नहीं है|


                                                                                                       ...to be continued

No comments: