Saturday 12 May 2012

मैं...ईश्वर हूँ मैं...


आहत हूँ मैं, राहत हूँ मैं, चाह के देखो किसी को चाहत हूँ मैं.
खोज भी मैं हूँ, बोझ भी मैं हूँ, दमकने लगोगे जिससे वो ओज भी मैं हूँ.

दावा हूँ मैं, लावा हूँ मैं, फँसना मत मुझमें एक छलावा हूँ मैं.
जल में, हवा में, भूमि में हूँ, देख सकते हो तो तुम ही में हूँ.

राग भी मैं, तेरा भाग भी मैं, जलादे तुझको जो वो आग भी मैं.
ज्ञान भी मैं हूँ, विज्ञान भी मैं हूँ, हो सके जो तुझको तो संज्ञान भी मैं हूँ.

दृष्टि हूँ मैं, वृष्टि हूँ मैं, ये पूरी की पूरी सृष्टि हूँ मैं.
आदि हूँ मैं, मैं ही अंत हूँ, माप नहीं पाओगे मैं अनंत हूँ.

घृणित भी मैं, और प्यारा भी मैं, देखा जाए तो सबसे न्यारा भी मैं.
पर्वतों में हूँ, पठारों में हूँ, हर नदी हर ताल के कठ|रों में हूँ.

नर हूँ मैं, और नारी हूँ में, इस जगत की चेतना सारी हूँ मैं.
मैं साज़ हूँ, आवाज़ हूँ, हर उड़ते पंछी की परवाज़ हूँ.

मैं आन भी हूँ, शान भी हूँ, मैं ही तेरी पहचान भी हूँ.
मैं गर्द हूँ, मैं सर्द हूँ, मैं तेरे दुख और दर्द हूँ.

मैं चाव तेरा, मैं घाव तेरा, मैं हर दशा में भाव तेरा.
मैं शांत भी हूँ, उत्तेज भी मैं, तू बने सिद्ध तो तेरा तेज़ भी मैं.

क्रोध भी मैं, प्रतिशोध मैं, संभल जाऊं तो शोध भी मैं.
मैं आस भी हूँ, विश्वास भी हूँ, मैं तुझमें बसा हुआ तेरा श्वास भी हूँ.

मैं अर्पित हूँ, मैं तार्पित हूँ, मैं ही तो एक समर्पित हूँ.
डर भी मैं, और शोक भी मैं, खुशियों से भरा एक लोक भी मैं.

मैं धूप भी और छाया भी, तेरी आत्मा भी तेरी काया भी.
तू मेरा है, मैं तेरी हूँ, तू मुझमें है, मैं तुझमें हूँ.

आलोकित हूँ, प्रकाशित हूँ, मैं वेदों में परिभाषित हूँ.
त्रेता और सतयुग में हूँ, मैं द्वापर और कलयुग में हूँ.

मैं राम हूँ, परशुराम हूँ, मैं ही मुरली वाला श्याम हूँ.
ईश हूँ मैं, सबका ईश्वर हूँ मैं, नाशवान तुम जबकि अनश्वर हूँ मैं.....

बेचारा दिल...


मेरे स्वाभिमान को तोड़ने में कसर नहीं छोड़ी,
आजकल उन अपनों से डरता है दिल.

सपने पूरे करना तो बहुत दूर है फिर भी,
आजकल तो खाली सपनों से डरता है दिल.

कहाँ थे हम और कहाँ लाके छोड़ दिया,
तक़दीर और इन हालातों से डरता है दिल.

सहानुभूति से कोई हमारा हाल ना पूछे,
तमाम तरह के सवालों से डरता है दिल.

सोचने को तो शायद अब कुछ बाकी नहीं रहा,
जाने किस सोच में अब पड़ता है दिल.

कभी हारे कभी जीते कि लड़ता है अब खुद ही से,
अब तो बस अपने ही पचड़ों में पड़ता है दिल.

सोचता हूँ अब तो बस...


सोचता हूँ अब तो बस, उसके लिए ही सोचता हूँ,
खोजता हूँ अब तो बस, उसका अक्स ही खोजता हूँ,

वो जो मुझे जाने,
मेरी आत्मा को पहचाने,

मेरा अहसास पहचानता हो,
मेरा हर श्वास वो जानता हो,

जो मेरे भाव के हर घाव को जाने,
जो मेरी शर्म का मर्म पहचाने,

मेरी आसों में महके वो,
मेरी साँसों में बहके वो,

मेरी हँसी को अपना जाने वो,
मेरे आँसू भी अपने माने वो,

मेरी आवाज़ में मेरे संग जुड़े,
मेरी परवाज़ में मेरे संग उड़े,

जो मुझमें बसे मेरी जान बने,
मुझसे जुड़े मेरी आन बने,

सोचता हूँ अब तो बस, उसके लिए ही सोचता हूँ,
खोजता हूँ अब तो बस, उसका अक्स ही खोजता हूँ,