आदमी क्या है?
एक घरोंदा मिट्टी का सा,
टूटता है, पानी की एक हलकी सी लहर से,
जोड़ने में फिर से जतन लगता है,
आदमी घरोंदा है मिट्टी का।
आदमी क्या है?
एक बुलबुला है पानी का,
पानी की बहती सतह पर टूटता भी है, डूबता भी है,
फिर उभरता है, फिर से बहता है,
वक्त की मौज पर सदा बहता हुआ,
आदमी बुलबुला है पानी का।
आदमी क्या है?
एक झोंका है हवा का,
एक बार आता है, जाता है,
हर बार एक खुशबु, एक एहसास छोड़ जाता है,
आदमी झोंका है हवा का।
आदमी क्या है?
एक साया है ख़ुद का, उसका बनाया हुआ,
जिंदगी के पन्ने पर, वक्त की स्याही से,
बनता है, धुंधलाता है फिर से बूंदों में,
आदमी साया है ख़ुद का।